कुरुक्षेत्र के समाचार मातृभूमि संदेश के पत्रकार मनीष परासर के द्वारा…..
नप अध्यक्षा उमा सुधा ने अपने बचपन के दिनों में मनाई जाने वाली तीज की याद को सांझा करते हुए बताया कि पहले सावन लगते ही तीज की तैयारियाँ शुरू हो जाती थी, महिलाएँ जवे (सेवाइयाँ) तोडऩे लगती थीं। तीज महिलाओं की मौज-मस्ती का त्यौहार होता है। आज हर कोई अपने परिवार में ही इस त्यौहार को मनाता है। आज भी सावन के मौके पर अनेक स्थानों पर झूले सजते हैं और महिलाएँ झूला भी झूलती हैं। कच्चे नीम की निंबोली… सावण जल्दी आइयो रे… हरियाणा का यह लोकगीत तीज के मौके पर शहर और गाँवों में रह रही बुजुर्ग महिलाओं की जुबान पर रहता है। बाजार में भी इन दिनों हरियाली तीज के आने की रौनक देखी जा सकती है। तीज के उपहारों और जरूरी सामान के खरीदारों का उत्साह देखते ही बनता है। उन्होंने कहा कि तीज को झूला उत्सव भी कहा जाता है। न सिर्फ गाँवों में बल्कि शहरों में भी झूले डालने की तैयारियाँ सावन लगते ही शुरू हो जाती हैं। शहरों में तो तीज को लेकर अनेक स्थानों पर तरह-तरह के आयोजन और समारोह भी हो रहे हैं जहाँ महिलाओं के लिए मेहँदी, चूडिय़ाँ, साज-श्रृंगार के सामान और झूला झूलने की खास व्यवस्था रहती है। इस मौके पर डा. शकुन्तला शर्मा सहित अन्य समाजसेवी संस्थाओं की प्रतिनिधि और गणमान्य महिलाएं मौजूद थी।